वो रोज़-रोज़ मेरा इम्तिहान लेता है

वो रोज़-रोज़ मेरा इम्तिहान लेता है कभी ज़मीन, कभी आसमान लेता है   ख़ुदा के बाद मुझे बस तू ही डराता है तू सर झुका के मेरी बात मान लेता है   कहानी अपनी सुनाना मैं चाहता हूँ उसे शह्र में आके कोई जब मकान लेता है   मैं जानता हूँ कि मुंसिफ़ का फ़ैसला … Continue reading वो रोज़-रोज़ मेरा इम्तिहान लेता है